कविता -29-Oct-2021
आत्मा की तृप्ति,,,,
खिल जाता है मेरा चेहरा
मुस्कान आ चस्पां होती है।
पूरा दिन रौशन -सा हुआ है
जब बिटिया बाबा कहती है।
गुनगुनाते नींद सिरहाने आती है
परेशानियाँ आसां होती हैं
बेटी हँस के गले जब लगती है।
थकान दूर माँ की हो जाती
भैया से बचने को बिटिया
आँचल में आ जब छिप जाती है।
रुतबा,रौशनी,रौनक बढ़
जाती है हर उस घर की
जिस घर बेटी जन्मती है।
भाग जग जाते हैं उस घर के भी
जिस घर वे विदा हो आती हैं।
बिटिया के हँसने से लगता है
आत्मा भीतर तक तृप्ति पाती है।
*सत्यवती मौर्य
राधिका माधव
01-Nov-2021 06:27 PM
बेहतरीन ..😊
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ऋषभ दिव्येन्द्र
30-Oct-2021 01:01 PM
खूब लिखा आपने 👌👌
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N.ksahu0007@writer
30-Oct-2021 05:01 AM
उम्दा ,लाज़वाब पेशकश दी
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